पंचशील आत्म- रूपांतरण के पांच आधार-सूत्र बोधिसत्त्व स्वामी आनंद अरुण
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• सभी प्रकार की शुद्धि, नियमित साधना, गुरुओं और साधकों का निरन्तर सत्संग, अच्छे संस्कार और समाधि की प्रतिपल अभीप्सा और गहरी व्याकुलता के बिना, होश और जागरुकता की सिर्फ बातों से आत्म-रुपान्तरण और बुद्धत्व घट गया है या घट जाएगा ऐसी आत्म प्रवंचना में पड़ना एक आध्यात्मिक दुर्घटना ही है ।
• हमारी यह असंभव धारणा है कि कोई संन्यासी या गुरु बन जाये तो वह सेक्स के पार हो जाता है । संन्यासी या गुरु होने का मतलब यह कभी नहीं होता है कि उसके शरीर में हारमोंस नहीं बनेंगे, उसको पसीना भी नहीं आएगा । शरीर के जो केमिकल्स है वे तो संबोधि प्राप्ति के बाद भी अपनी प्रकृति से संचालित होते रहेंगे ।
• कम बोलने वाला व्यक्ति ही सत्य बोल सकता है क्योंकि जीवन के सत्य तो बहुत थोड़े हैं । बाकि सब तो झूठ का विस्तार है ।
- इसी पुस्तक से