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Kaivalya Upanishad
Kaivalya Upanishad
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ध्यान बढ़े, तो पदार्थ चैतन्य होने लगता है। ध्यान घटे तो चेतना पदार्थ होने लगती है। ध्यान की मात्रा का बढ़ जाना ही पदार्थ का रूपांतरण है आत्मा में। अगर ध्यान परिपूर्ण हो जाए, तो सारा जगत परमात्मा हो जाता है। क्योंकि तब हमें दिखायी पड़ने लगता है-हर जगह वही। हर लहर में सागर। - भगवान श्री रजनीश
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