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Yukranda

गीता दर्शन अध्याय-९ भगवान श्री रजनीश

गीता दर्शन अध्याय-९ भगवान श्री रजनीश

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आदमी इस जगत में अपूर्ण व्यक्तित्व है, बाकी सबके पास पूरा व्यक्तित्व है। इस लिहाज से बड़ी कठिनाई है। वह कठिनाई यह है कि आदमी पूरा आदमी न होने से, चाहे तो जानवरों से भी नीचे गिर सकता है। और यही उसकी गरिमा भी है कि वह चाहे तो आदमी से भी ऊपर, देवताओं से भी ऊपर उठ सकता है।

इसलिए, आपको यह बात इसलिए कह रहा हूं कि जानवरों में राक्षस कोई भी नहीं होता, क्योंकि जानवरों में देवता कोई भी नहीं होता। आदमी आदमी भी हो सकता है, नीचे गिर जाए तो राक्षस भी हो सकता है, ऊपर उठ जाए, तो देवता भी हो सकता है। आदमी एक संक्रमण व्यवस्था है। आदमी सुनिश्चित नहीं है, सृजन में, प्रक्रिया में है। तो आदमी दोनों तरफ जा सकता है। 

-भगवान श्री रजनीश

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