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Yukranda

गीता दर्शन अध्याय-६ भगवान श्री रजनीश

गीता दर्शन अध्याय-६ भगवान श्री रजनीश

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मनुष्य में और पशुओं में इतना ही फर्क है कि पशुओं के पास कोई मन नहीं और मनुष्य के पास मन है। वह उसका गौरव भी है, वही उसका कष्ट भी है। वही उसकी शान भी है, वही उसकी मृत्यु भी है। मन के कारण वह पशुओं के ऊपर उठ जाता है। लेकिन मन के ही कारण वह परमात्मा नहीं हो पाता। पशुओं से ऊपर उठना हो, तो मन का होना जरूरी है। और अगर मनुष्य के भी ऊपर उठना हो और परमात्मा को स्पर्श करना हो, तो मन का पुनः न हो जाना जरूरी है। यद्यपि मनुष्य जब मन को खो देता है, तो पशु नहीं होता, परमात्मा हो जाता है। 

-भगवान श्री रजनीश

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