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Yukranda
गीता दर्शन अध्याय-१५ भगवान श्री रजनीश
गीता दर्शन अध्याय-१५ भगवान श्री रजनीश
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वैराग्य गहरा हो, तो गुरु से संबंध हो सकता है। वैराग्य गहरा हो, तो शास्त्र का अर्थ प्रकट हो सकता है। और वैराग्य गहरा हो, तो गुरु भी न हो, शास्त्र भी न हो, तो पूरा जीवन ही गुरु और शास्त्र बन जाता है।
लेकिन वैराग्य को गहरा करने की तरकीबें नहीं हैं। वैराग्य को गहरा करने का एक ही मार्ग है, आपका अनुभव पूरी सचाई में जीया जाए। जो भी अनुभव हो। सुख का हो, दुख का हो, संताप हो, चिंता हो, असफलता हो जो भी अनुभव हो, उसे पूरी तरह जीया जाए, होशपूर्वक जीया जाए।
-भगवान श्री रजनीश
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