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Yukranda
गीता दर्शन अध्याय-१४ भगवान श्री रजनीश
गीता दर्शन अध्याय-१४ भगवान श्री रजनीश
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सभी बुराइयां इस भांति उपयोग की जा सकती हैं कि सृजनात्मक हो जाएं। ऐसी कोई भी बुराई नहीं है, जो खाद न बन जाए, और जिससे भलाई के फूल न निकल सकें। और बुराई को खाद बना लेना भलाई के बीजों के लिए, उस कला का नाम ही धर्म है।
जीवन में जो भी उपलब्ध है, उसका ठीक-ठीक सम्यक उपयोग जो भी व्यक्ति जान लेता है, उसके लिए जगत में कुछ भी बुरा नहीं है। वह तमस से ही प्रकाश की खोज कर लेता है। वह रजस से ही परम शून्यता में ठहर जाता है। वह सत्य से गुणातीत होने का मार्ग खोज लेता है।
-भगवान श्री रजनीश
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