गीता दर्शन अध्याय-११ भगवान श्री रजनीश
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हमारी भी वासना वही है, जो पशु की है। लेकिन एक वासना है, परमात्मा की वासना, जो मनुष्य की ही है। कोई पशु विराट को नहीं खोज रहा है। और जब तक आप विराट को नहीं खोज रहे हैं, तब तक जानना कि पशु की सीमा का आपने अतिक्रमण नहीं किया। मनुष्य विराट की खोज है, असंभव की चाह है।
सभी पशु अपने को बचाने की कोशिश में लगे हैं। कोई भी पशु मरना नहीं चाहता, कोई पशु मिटना नहीं चाहता। सिर्फ मनुष्य में कभी-कभी कोई मनुष्य पैदा होते हैं, जो अपने को दांव पर लगाते हैं, अपने को मिटाने की हिम्मत करते हैं, ताकि परम को जान सकें। अकेला मनुष्य है, जो अपने जीवन को भी दांव पर लगाता है।
जीवन को दांव पर लगाने का साहस, असंभव की चाह है।
-भगवान श्री रजनीश