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Yukranda

गीता दर्शन अध्याय-१० भगवान श्री रजनीश

गीता दर्शन अध्याय-१० भगवान श्री रजनीश

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गीता दो व्यक्तियों के बीच ही चर्चा नहीं है दो अस्तित्वों के बीच, दो दुनियाओं के बीच, दो लोकों के बीच, दो अलग-अलग आयाम जो समानांतर दौड़ रहे हैं, उनके बीच चर्चा है। इसलिए दुनिया में गीता जैसी दूसरी किताब नहीं है, क्योंकि इतना सीधा डायलाग, ऐसा सिधा संवाद नहीं है।

गीता सीधा डायलॉग है। मैं-तू की हैसियत से दो दुनियाएं सामने खड़ी हैं। एक तरफ सारी मनुष्यता का डांवाडोल मन अर्जुन में खड़ा है और एक तरफ सारी भगवत्ता अपने सारे निचोड़ में कृष्ण में खड़ी है। और इन दोनों के बीच सीधी मुठभेड़ है, सीधा एनकाउंटर है। यह बहुत अनूठी घटना है। इसलिए गीता एक अनूठा अर्थ ले ली है। वह फिर साधारण धार्मिक किताब नहीं है। उसको हम और किसी किताब के साथ तौल भी नहीं सकते। वह अनूठी है। - भगवान श्री रजनीश

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