एस धम्मो सनंतनो धम्मपद भगवान बुद्ध की देशना 7 / भगवान श्री रजनीश
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बुद्ध ने कहा-जागो। जागकर जिसका दर्शन होता है, उसको ही उन्होंने धर्म कहा। वह धर्म शाश्वत है, सनातन है। एस धम्मो सनंतनो ।
धर्म तुम्हारा स्वभाव है। अस्तित्व का स्वभाव; तुम्हारा स्वभाव; सर्व का स्वभाव। धर्म ही तुम्हारे भीतर श्वास ले रहा है। और धर्म ही वृक्षों में हरा होकर पत्ते बना है। और धर्म ही छलांग लगाता है हरिण में। और धर्म ही मोर बनकर नाचता है। और धर्म ही बादल बनकर घिरता है। और धर्म ही सूरज बनकर चमकता है। और धर्म ही है चांद-तारों में। और धर्म ही है सागरों में। और धर्म ही सब तरफ फैला है।
धर्म से मतलब है स्वभाव। इस सबके भीतर जो अंतस्तल है, वह एक ही है। जीवंतता अर्थात धर्म। चैतन्य अर्थात धर्म। यह होने की शाश्वतता अर्थात धर्म।
- भगवान श्री रजनीश