एस धम्मो सनंतनो धम्मपद भगवान बुद्ध की देशना 4 / भगवान श्री रजनीश
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साक्षी समस्त शास्त्रों का सार है। साक्षी समस्त कही गयी, न कही गयी उपदेशनाओं का सार है। साक्षी के लिए अलग-अलग शब्द उपयोग किए गए हैं, लेकिन भाव को पकड़ लो। भाव इतना ही है कि तुम दृश्य से छूटते जाओ और द्रष्टा में डूबते जाओ । जो दिखायी पड़े, जानना अलग है, भिन्न है, पृथक है। जो देखे, जानना यही मैं हूं। और धीरे-धीरे उस जगह आ जाना जिसके पार जाने का उपाय न हो। जहां द्रष्टा ही द्रष्टा बचे, देखने को कुछ न बचे। जहां साक्षी ही साक्षी बचे। जहां एक ही स्वाद बचे तुम्हारे भीतर, साक्षी का। जैसे सागर का जल सब जगह खारा है, कहीं से भी चखो - बस, हाथ में आ गया प्यारे का आंचल । पकड़ ली राह। उठ गया पहला कदम।
-भगवान श्री रजनीश