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Yukranda

एस धम्मो सनंतनो धम्मपद भगवान बुद्ध की देशना 3 / भगवान श्री रजनीश

एस धम्मो सनंतनो धम्मपद भगवान बुद्ध की देशना 3 / भगवान श्री रजनीश

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तुम्हारी तृष्णाएं ही डुबाती हैं, संसार नहीं।

तुम्हारे तृष्णाओं के तूफान ही डुबाते हैं, संसार नहीं।

तृष्णाएं गयीं, होश आया, संसार सिकुड़ा। ऐसी जलधार हो जाती है, जैसे गर्मी के दिनों में सूख गई नदी की रेखा। ऐसे ही उतर जाओ, नाव की भी जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे ही पैदल पार कर जाओ, पंजा ही मुश्किल से डूबता है। और अगर जरा ठीक से खोजो, और भी अगर होश से भर जाओ, तो जलधार बिलकुल ही सूख जाती है। नदी की रेत ही रह जाती है।

संसार का संसार होना तुम्हारी कामना में छिपा है। संसार तुम्हारा प्रक्षेपण हैं। इसलिए संसार को दोष मत देना; न संसार के ऊपर उत्तरदायित्व थोपना। 

-भगवान श्री रजनीश

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