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Yukranda
एस धम्मो सनंतनो धम्मपद भगवान बुद्ध की देशना 10 / भगवान श्री रजनीश
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बुद्धत्व का अर्थ होता है, जिसकी जीवन ऊर्जा अपने परिपूर्ण प्रवाह में आ गयी, जिसकी जीवन ऊर्जा अब अवरुद्ध नहीं है, बह रही है। जो बहता है, उसके साथ-साथ दूसरों में भी बहने की संवेदनशीलता पैदा होती है। नाचते आदमी के साथ नाचने का मन होने लगता है, हंसते आदमी के साथ हंसी फूटने लगती है, रोते आदमी के साथ उदासी आ जाती है। बुद्ध तो प्रवाहशील हैं। सरित प्रवाह है। उनकी धारा तो अब किसी अवरोध को नहीं मानती, किसी चट्टान को स्वीकार नहीं करती। अब उन पर न कोई पक्षपात हैं, न कोई बांध हैं, अब परम स्वतंत्रता उनके जीवन की स्थिति है। जैसे नदी बही जाती है परिपूर्ण स्वतंत्रता से, ऐसा बुद्ध का चैतन्य भाव है।
-भगवान श्री रजनीश
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